एक शिक्षक की कहानी, दो असफलता और 9 साल के इंतजार के बाद बने आरएएस अधिकारी

कहते हैं सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता. जो लोग लक्ष्य हासिल करने की जिद्द ठान लेते हैं. सफलता एक दिन उनके कदम जरूर चूमती है. कुछ ऐसी ही कहानी है अर्जुन राम बिश्नोई की. राज्य प्रशासनिक सेवा में दो बार असफल होने के बाद भी अर्जुन ने अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए दिन-रात एक की. और आखिरकार तीसरे प्रयास में अर्जुन राम बिश्नोई को सफलता मिली.

अर्जुन राम का जीवन परिचय

राजस्थान की ब्ल्यू सिटी यानि जोधपुर के एक गांव एकलखोरी के रहने वाले अर्जुन राम बिश्नोई बचपन से ही शिक्षा में काफी अच्छे थे. 10वीं कक्षा में जहां अर्जुन राम ने 69 फीसदी अंक हासिल किए वहीं आगे की पढ़ाई के लिए अर्जुन राम जोधपुर चले गए हैं. अर्जुन राम ने 12वीं की कक्षा 75 फीसदी अंकों के साथ उत्तीर्ण की.  

पहले शिक्षक बनने का था सपना

12वीं परीक्षा उत्तीर्ण कर आगे शिक्षक बनने के सपने के साथ BSTC की प्रवेश परीक्षा दी. बीएसटीसी की परीक्षा पास करने के बाद  2009-11 में लोकमान्य तिलक TT कॉलेज डबोक, उदयपुर से BSTC की डिग्री हासिल. इसके बाद अपने पहले ही प्रयास में साल 2012 में अर्जुन राम ने तृतीय श्रेणी शिक्षक बनने में सफल हुए. 

शिक्षक बनने के 9 साल बाद बने आरएएस

साल 2012 में शिक्षक बनने के बाद अब अर्जुन राम बिश्नोई और कुछ करना चाहते थे. उनका सपना था की वो राज्य प्रशासनिक सेवा में जाकर राजस्थान की सेवा करें. शिक्षक बनने के बाद अर्जुन राम ने आरएएस की तैयारी शुरू की. 

शुरू को दो प्रयास में मिली असफलता

साल 2012 में अर्जुन राम शिक्षक बने. शिक्षक बनने के बाद भी अर्जुन राम ने अपनी पढ़ाई जारी रखी. अर्जुन राम ने आरएएस बनने की ठानी और शिक्षक बनने के 9 साल बाद सफलता भी हासिल की. लेकिन इस सफलता से पहले अर्जुन को दो बार असफलता का मुंह भी देखने को मिला. लेकिन इस असफलता से अर्जुन ने हार नहीं मानी. हालांकि अर्जुन ने आरएएस के पहले प्रयास में मुख्य परीक्षा तक व दूसरे प्रयास में साक्षात्कार तक पहुंचे. लेकिन तीसरे प्रयास में असफलता के तिलिस्म तो तोड़ते हुए सफलता हासिल की.

अर्जुन का परिवार

30 वर्षीय अर्जुन राम बिश्नोई का जन्म जोधपुर जिले के एकलखोरी गांव में हुआ. अर्जुन के पिता  माणक राम बिश्नोई BSF से सेवानिवृत्त है. इसके साथ ही इनकी मां बाबू देवी हैं. अर्जुन की धर्मपत्नी का नाम विद्या देवी है.

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