नौकरी की चाह ने पहुंचाया दिल्ली, लेकिन किस्मत लेकर जाना चाहती थी बुलंदियों पर

शिखर पर पहुंचने में आज की इस कड़ी में आज हम बात करने जा रहे एक ऐसे सख्स की जिन्होंने ना तो कुछ कर गुजरने का सपना देखा था और ना ही बड़ा अधिकारी बनने का. छोटी की नौकरी करते हुए अपने और अपने परिवार की गुजारा करने का सपने देखने वाले मनोज कुमार रॉय को पता नहीं था की उनकी किस्मत के सितारों ने उनकी तकदीर में कुछ और ही लिखा है. एक मित्र के सुझाव का पालना करने के बाद जो कुछ हुआ वो मानो एक फिल्मी कहानी सी लगता है. आज की एक खास पेशकश में हम बात करेंगे बिहार के रहने वाले मनोज कुमार रॉय की

12वीं की पढ़ाई की बिहार में, नौकरी की तलाश में पहुंचे दिल्ली

बिहार के सुपौल जनपथ में जन्मे मनोज कुमार राय ने एक गरीब परिवार में जन्म लिया. 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद मनोज कुमार दिल्ली नौकरी की तलाश में पहुंचे और दिल्ली में नौकरी नहीं मिली तो एक छोटी सी स्टॉल लगाकर अंडे और सब्जी बेचने का काम शुरू किया. इसके साथ ही अन्य छोटे-मोटे काम करके अपना जीवन यापन करने लगे. इसके बाद मनोज को जेएनयू यूनिवर्सिटी में राशन पहुंचाने का काम मिला. राशन पहुंचाने के दौरान मनोज की जानकारी हुई उदय कुमार से. बस यहीं से मनोज का जीवन बदलने वाला था

मनोज ने दी पढ़ाई जारी रखने की सलाह. शाम के बैच में की पढ़ाई

उदय की बात मानते हुए मनोज ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कॉलेज में शाम के बैच में पढ़ाई करना शुरू किया. दिन में काम करना और शाम को पढ़ाई करना मनोज की अब दिनचर्या बन चुकी थी. पढ़ाई में अव्वल होने की वजह से मनोज को स्नातक करने में ज्यादा समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा. हालांकि स्नातक करने के बाद यूपीएससी की तैयारी को लेकर मनोज के मन में कुछ संशय की स्थिति थी. लेकिन उदय कुमार ने ही मनोज को सलाह दी की वो यूपीएससी सिविल सर्विस की तैयारी करे. पहले मन में संशय था. लेकिन अंत में मनोज ने फैसला लिया की यूपीएससी की तैयारी करके बड़ा अधिकारी बनना है.

तीन बार चखा असफलता का स्वाद

मनोज कुमार ने दिल्ली में रहकर गुपचुप तरीके से यूपीएससी सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू कर दी. इस दौरान पहली बार मनोज ने 2005 में यूपीएससी की परीक्षा दी. लेकिन पहले ही प्रयास में असफल रहे. लेकिन मनोज ने इससे हार नहीं मानी और पटना लौटकर तैयारी शुरू कर दी. करीब 3 साल तक बच्चों ट्यूशन करवाते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी. मनोज कुमार ने 4 बार सिविल सर्विसेज की परीक्षा दी लेकिन चारों बार ही असफल हुए.

अंग्रेजी बनी समस्या

पढ़ाई में मनोज का हाथ अंग्रेजी में थोड़ा टाइट था. जिसके चलते उनको बहुत परेशानी होती थी. दो विषयों में एक विषय अंग्रेजी का था और उसको पास करना जरुरी था. लेकिन मनोज ने हार नहीं मानी और अपनी तैयारी जारी रखी. और आखिरकार साल 2010 में मनोज ने यूपीएससी की परीक्षा को क्लियर करते हुए अपने सपने को पूरा किया.

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