प्रदेश सरकार की ओर से संविदा कर्मियों को नियमित करने की घोषणा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा कर तो दी गई है. लेकिन जो नियम लगाए गए हैं उससे संविदा कर्मियों के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई है. जिसके चलते करीब 95 फीसदी से ज्यादा संविदा कर्मी नियमित होने की प्रक्रिया से बाहर हो सकते. और इसमें भी एक बड़ा नुकसान चिकित्सा क्षेत्र में लगे संविदा कर्मियों का हो सकता है.
बजट में क्या की गई घोषणा ?
10 फरवरी को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा इस कार्यालय का अंतिम बजट पेश किया गया है. बजट में संविदा कर्मियों को नियमित करने के नियम में संशोधन करने की घोषणा की गई. बिंदु संख्या 158 में लिखा है कि “राजस्थान के संविदा कर्मचारियों को भी आईएएस चयन के समय पूर्व में की गई सेवा लाभ दिए जाने की तर्ज पर संविदा कर्मचारियों को भी नवीन नियमों में आने से पहले की सेवा लाभ दिए जाने की घोषणा करता हूं. ”
करीब 44 हजार चिकित्सा संविदा कर्मी हो सकते बाहर
सरकार द्वारा बजट में जो नियम लागू किया गया है उसके तहत अगर बात की जाए तो विभिन्न निभागों में लगे हुए करीब 1 लाख 10 हजार से ज्यादा संविदा कर्मियों में से 95 फीसदी संविदा कर्मियों के बाहर होने की तलवार लटक गई है. जिसमें सबसे ज्यादा असर पड़ सकता है चिकित्सा के क्षेत्र में लगे करीब 44 हजार संविदाकर्मियों पर. इसके साथ ही शिक्षा क्षेत्र के करीब 41 हजार, ग्राम विकास व पंचायती राज में करीब 16 हजार और अल्पसंख्यक विभाग में करीब 5 हजार संविदा कर्मियों के नियमों से बाहर होने की तलवार लटक गई है.
नियमों में संशोधन की उठने लगी मांग
आईएएस पैटर्न की तर्ज पर अनुभव की गणना को लेकर अब संविदा कर्मियों का विरोध शुरू हो चुका है. प्रदेश के करीब 1 लाख से ज्यादा संविदा कर्मियों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मांग की है कि जल्द से जल्द इन नियमों में संशोधन किया जाए. अगर नियमों में संशोधन नहीं होता है तो फिर संविदा कर्मियों द्वारा आर-पार की लड़ाई का बिगुल बजाया जाएगा