प्रदेश में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए हर सरकार की ओर से हर संभव प्रयास किए जाते हैं. लेकिन ये प्रयास उस समय ठगा सा महसूस करता है जब शिक्षकों की ड्यूटी शिक्षण कार्य के अलावा सभी कार्यों में लगा दी जाती है. राजस्थान में लम्बे समय से शिक्षकों द्वारा बीएलओ ड्यूटी का विरोध देखने को मिल रहा है. लेकिन आज तक इस समस्या का समाधान नहीं होने से शिक्षकों में खासा आक्रोश है. प्रदेश के सभी शिक्षक संगठनों ने अब इसका विरोध खुलकर करना शुरू कर दिया है.
करीब 80 फीसदी शिक्षकों की ड्यूटी बीएलओ के रूप में
शिक्षा के क्षेत्र में अगर राजस्थान की बात की जाए तो राजस्थान में इस समय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को लेकर दूसरे पायदान पर काबिज है. लेकिन इस स्थान पर बने हुए राजस्थान को करीब 6 सालों का समय बीत चुका है. सरकार की ओर से हर बार राजस्थान को पहले पायदान पर लाने की बात कही जाती है. लेकिन पहले पायदान पर नहीं आने की प्रमुख वजह मानी जा रही है शिक्षकों की ड्यूटी बीएलओ में लगी होना. प्रदेश में अगर बात की जाए तो करीब 80 फीसदी से ज्यादा शिक्षकों की ड्यूटी बीएलओ के रूप में लगी हुई है. जिसके चलते स्कूलों में शिक्षण कार्य काफी प्रभावित हो रहा है.
क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का आदेश
शिक्षक नेता केसर सिंह चंपावत का कहना है कि “सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों की ड्यूटी बीएलओ में नहीं लगाने के स्पष्ट निर्देश दे रखे हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए शिक्षकों की ड्यूटी बीएलओ कार्य में लगाई जा रही है. इसके साथ ही सरकार की ओर से 12 वर्गों के कार्मिकों की ड्यूटी ही बीएलओ में लगाई जाती है जो शिक्षकों के साथ भेदभाव पूर्ण रवैया है. इसलिए सभी वर्गों के कार्मिकों को समान अनुपात में बीएलओ में ड्यूटी लगाई जाए. शिक्षक अपना पूरा समय बीएलओ ड्यूटी में कर देता है जिसके चलते उसके रिजल्ट पर विपरित प्रभाव पड़ता है. जिसके बाद शिक्षा विभाग की ओर से कम रिजल्ट देने वाले शिक्षकों पर कार्रवाई भी की जाती है.”
एकल शिक्षक वाले स्कूलों को बीएलओ ड्यूटी से मुक्त करने की मांग
शिक्षक नेताओं का कहना है कि प्रदेश में कई स्कूल हैं जो एकल शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. ऐसे में सरकार इन शिक्षकों को बीएलओ कार्य से मुक्त रखे. साथ ही एक समय में सिर्फ 50 फीसदी तक शिक्षकों की ड्यूटी ही बीएलओ कार्य में लगाए. जिससे स्कूलों में शिक्षक कार्य प्रभावित ना हो.